दिनांक :29.12.2012
आम आदमी
आज के सिनेमा का शौक रखता हूँ , बच्चे देखे तो गुर्राता हूँ
दुनिया में नाम हो ये हसरत है , अपनों का नाम छपे तो जल जाता हूँ।
आम आदमी हूँ ,अपनों से घबराता हूँ।
वादों से, नारों से , बड़ी आस लगता हूँ
अपनों के बहकावो से खुद को छला पता हूँ।
आम आदमी हूँ . ...
ऊंचाई से घबराहट है , शायद गिर जाने से डरता हूँ
अंधरे सायों के डर से , अपने ही चेहरे पर कालिख मल आता हूँ।
आम आदमी हूँ ...
कोई महजबीं जरा मुस्कुरा दे , खुद पर इतराता हूँ
गुजर जाता हूँ लाशों के बगल से , ना खुद पर शर्माता हूँ।
आम आदमी हूँ ....
उठ खड़ा होना आता नहीं , बार बार गिर जाता हूँ
फिर भी रोशनी हो मेरे आँगन में , इसीलिए मशाल जलाता हूँ।
आम आदमी हूँ ...
लड़ना आता नहीं है , पर सदियों से लड़े चला आता हूँ
वो कहते है क्या पाओगे , में इसे ही जीना बतलाता हूँ . में इसे ही जीना बतलाता हूँ।
आम आदमी हूँ , अपनों से घबराता हूँ। अपनों से घबराता हूँ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें