कवि नहीं हूँ पर लिखना जरूरी समझता हूँ
दिल की बात दिल में ना रहे मैं उद्गार जरूरी समझता हूँ
दिल की बात दिल में ना रहे मैं उद्गार जरूरी समझता हूँ
आज के हालात देख कर कहता हूँ
नारी
तलाश हो खंजरो की ,रौशनी का पहरा हो
समझ हो कायदों की और कानून का सहारा हो।
मैने सहा है अब तक ,पर और नहीं अब सहना हो
मेरी ही किस्मत में क्यों हर वक्त रोना हो।
बाहर नोचते भेडिये हों या घर में पीटते शैतान हों
हनन मेरे अधिकारों का है ये , क्या मानवों में नहीं गिनते हो।
बौछार हो पानी की या कहर बरसाती लाठियां हो
हक माँगा है भीख नहीं, मुझे भी जीने का अधिकार हो।
दुनिया दिखाई है मैंने तुमको ,दर्द के एहसास से क्या डारते हो
रोक सकोगे क्या उस नारी को जो सह सकती प्रसव बेदना को
मिले सम्मान ,सुरक्षा ,न्याय और जीवन का अधिकार दो
नहीं तो माँ का श्राप है , हर घर में जिजा * और लक्ष्मी * का अवतार हो।
* जिजाबाई * लक्ष्मीबाई
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