शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

nari नारी- a woman

कवि नहीं हूँ पर लिखना जरूरी समझता हूँ
दिल की बात दिल में ना रहे मैं उद्गार जरूरी समझता हूँ


आज के हालात देख कर कहता हूँ 

                                     नारी 

 तलाश हो खंजरो की ,रौशनी का पहरा हो 
समझ हो कायदों की और कानून का सहारा हो।

मैने सहा है अब तक ,पर और नहीं अब सहना हो 
मेरी ही किस्मत में क्यों हर वक्त रोना हो।

बाहर नोचते भेडिये हों या घर में पीटते शैतान हों 
हनन मेरे अधिकारों का है ये , क्या मानवों में नहीं गिनते हो।

बौछार हो पानी की या कहर बरसाती लाठियां हो 
हक माँगा है भीख नहीं, मुझे भी जीने का अधिकार हो।

दुनिया दिखाई है मैंने तुमको ,दर्द के एहसास से क्या डारते हो 
रोक सकोगे क्या उस नारी को जो सह सकती प्रसव बेदना को 

मिले सम्मान ,सुरक्षा ,न्याय और जीवन का अधिकार दो 
नहीं तो माँ का श्राप है , हर घर में जिजा * और लक्ष्मी * का अवतार हो।

* जिजाबाई  * लक्ष्मीबाई


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