रविवार, 10 फ़रवरी 2013

कविता- मानव तस्करी Poem - Human Trafficking

मानव तस्करी 

जानवरों की खालों की ,हड्डियों की तस्करी होती है।
इन्सां  कैसा जानवर हो गया है,
खुदा के बन्दों (मानवों ) की भी तस्करी होती है।

मासुम  सवाल है मासुम  जानों का ,
 कहाँ ले जा रहे हो, ये तस्करी क्या होती है।

बच्चे बिकते है गरीबी से,
 बच्चे उठते है दरिंदगी से ,
दिल नही पसिजते इन जानवरों के ,
हंसते खिलखिलाते बच्चे,
नहीं लगते अच्छे, जो मानव तस्करी होती है।

सब का हिस्सा होता है,
छोटा क्या और बड़ा क्या ,
सब को पता है पर चुप हैं ,
पेट भरने ,कमाने के लिए तो नहीं, तस्करी होती है।

देश का भविष्य बिकता है बाजार में ,
कोठों पर बोली लगती हजार में,
वो देश सपना देखे महाशक्ति का ,
जिस देश में बच्चों की तस्करी होती है।
#अहिंसक

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